ढ्ल चली हॆ दोपहर
बयार मंद-मंद हॆ
धूप भी नहीं प्रखर
यह समय भला-भला
नये से रंग में ढ्ला
जीवन का नया मॊड़ हॆ
न कोई भाग दॊड़ हॆ
काम का न बोझ हॆ
जाना न कहीं रोज हॆ
जब जो खुशी वही करॊ
न मन का हॊ नहीं करॊ
चाहे जहां चले गये
दायित्व पूरे हो गये
न सर पे मेरे ताज़ हॆ.
फिर भी अपना राज़ हॆ
तन थका न क्लान्त हॆ
मन बड़ा शान्त हॆ
दिन-रात तेरा साथ हॆ
बड़ी मधुर सी बात हॆ
जो मिल गया प्रसाद हॆ
न अब कॊई विषाद हॆ
बगिया की हर कली खिली
उसे सभी खुशी मिली
मकरन्द जो बिख्रर गया
सॊन्दर्य सब निख्रर गया
आज तुम जी भर जियो
खुशी के घूंट तुम पियॊ
कल की कल पे छॊड़ दॊ
कल जो होना हो सो हो
isiliye kaha gaya "santosh hi sabse bada dhan hai "satisfaction though name is life ,full of life."veerubhai
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण किया आपने..
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